रविवार, 5 नवंबर 2017

अनाथ युवक का बलिदान एक प्रेरक कहानी (An orphan youth sacrifice, a motivational story)


एक खूंखार लकड़बग्घे ने  गांव वालों को बहुत परेशान कर रखा था | रात  मे वह  चुपके से गांव में घुस आता था  कभी किसी पशु को मारकर उठा ले जाता, कभी किसी बच्चे को| लकड़बग्घे मारने की गांव वालों ने बहुत कोशिश की पर वह हाथ नहीं लगा| बाहर से शिकारी भी  बुलाए गए, लेकिन वह भी उसे मारने में असफल रहे चारों ओर से निराश गांव वालों ने सोचा चलकर बुजुर्गों की सलाह लेनी चाहिए | अब तो वही कोई रास्ता सुझा सकते हैं| वह सब मुखिया समेत बुजुर्गों के पास पहुंचे| उनके सामने अपनी समस्या रखकर उपाय पूछने लगे, एक बुजुर्ग ने कहा जानवर आग  से डरते है, रोज रात को गांव के चारों ओर आग  जलाए रखो लकड़बग्घा हरगिज नहीं आएगा| लेकिन यह तो बहुत मुश्किल काम है, एक युवक ने तर्क किया " भला इतनी लकड़ी आएगी कहां से?
घरों में चूल्हा जलाने के लिए भी तो ठीक से लकड़ी नहीं मिलती " युवक की बात लोगों को उचित लगी , कुछ देर बाद एक दूसरे बुजुर्ग ने कहा चलो  लकड़ी नहीं है तो ना सही फिर तो ऐसा करो भैया गांव के चारों ओर एक गहरी खाई खोदो  उसमें लबालब पानी भर दो लकड़बग्घा तैरना तो जानता नहीं गांव में घुस ही  नहीं पाएगा | "हां यह  तो हो सकता है" कुछ लोगों ने दूसरे बुजुर्ग का समर्थन किया| पर तुरंत उनकी बात काटते हुए, वही युवक फिर बोला  खाई खोदना  मुश्किल नहीं है, लेकिन इतना पानी आएगा कहां से, गांव के अधिकांश कुए  तो सुख रहे है , "बात तो सही है" कुछ लोग युवक से सहमत हुए  लेकिन गांव का मुखिया युवक को गुस्सा करते हुए बोला, मैं दुख रहा हूं तुम हर बात में मेन-मिख  निकाल रहे  हो , अगर तुम इतने अकलमंद हो तो फिर स्वयं कोई रास्ता क्यों नहीं खोज निकालते क्यों अपना और बुजुर्गों का समय जाया कर रहे हो | युवक मुखिया के बात  का बुरा ना मानते हुए बोला बड़ों के सामने मुंह खोलते हुए मुझे संकोच हो रहा था  वैसे एक तरकीब मेरे दिमाग में है, उसकी बात सुनकर लोगों के चेहरे पर उत्सुकता दौड़  आई | कुछ सोंचते  हुए वह बोला, "एक भारी भरकम पिंजरा  तैयार करवाइये  जो अपने आप बंद हो जाता हो "| मुखिया  उसकी बात सुनकर व्यंग  से  हंस पड़ा और बोला,
खाली पिंजरे में लकड़बग्घा घुसेगा ही क्यों ? आप ठीक कह रहे हैं खाली पिंजरे में लकड़बग्घा क्यों होते घुसेगा इसलिए पिंजरे के भीतर एक पशु बांधना होगा, पशु  के लालच में लकड़बग्घा पिंजरे के भीतर छलांग लगाएगा बस उसी झटके में पिंजरा बंद हो जाएगा | सुबह आप लोग उसे खत्म कर दीजिएगा | लेकिन इसके लिए हम में से किसी को अपना पशु बलिदान करना होगा बोलिए मंजूर है, "मंजूर है" युवक की बात लोगों को भा  गई, उन्होंने शाबाशी में उसकी पीठ थपथपाई, फिर गांव की लोहारों को आदेश दिया कि वह कल संध्या तक अपने आप बंद हो जाने वाला पिंजरा तैयार कर दे , पशुओं की कोई समस्या नहीं है इतनी बड़ी विपत्ति से छुटकारा पाने के लिए कोई भी अपनी एक बकरी खुशी खुशी दे देगा, सारी बातें हो गई लोग निश्चिंत होकर अपने अपने घर चले गए , दूसरे दिन संध्या से पहले ही पिंजरा बनकर तैयार हो गया और उसे गांव की सीमा पर रख दिया गया और पिंजरे के अंदर पशु बांधने से था, इसी बात पर लोगों में विवाद छिड़ गया कोई कहता तुम्हारे पास बहुत सी बकरियां है यह क्यों नहीं देते, कोई कहता तुम्हारे पास तो दर्जनों बकरी है  तुम ही एक दे दोगे तो कौन सी कम हो जाएगी कोई कहता मेरे पास तो दो ही बकरियां है जरा सोचो अगर मैं उनमें से एक बकरी दे देता  हूं तो मेरे छोटे छोटे बच्चे दूध के लिए नहीं तरस  जाएंगे|

 तू तू मैं मैं में  कोई फैसला ना हो पाया, अंधेरा गिरने लगा बात तो कल पर टाल कर लोग अपने अपने घरो को चल दिए लोगों की छुद्रता पर युवक का मन खिन्न हो उठा | अपने झोपड़ी में लौट  कर वह  विचार करने  लगा | लकड़बग्घा हर रात किसी न किसी की जान लेकर रहता है, आज भी वह किसी को अपना आहार बनाएगा, हलाकि  कल अवश्य कोई ना कोई अपने पशु की बलि देने के लिए राजी हो जाएगा, लेकिन इसके कारण आज व्यर्थ ही  एक निर्दोष को अपने प्राण गवाने  होंगे, उसने सोचा अपने पशुओं के प्रति लोगों का मोह  स्वभाविक  है वह उन्हें अपने बच्चों की तरह प्यार करते हैं, इसलिए लकड़बग्घे को भेट  चढ़ाते हुए उन्हें कष्ट हो रहा है, तो क्यों ना वह स्वयं पिंजरे में जाकर बैठ जाएगा  लकड़बग्घा उसे खा जाएगा लेकिन गांव वाले तो इस भयानक मुसीबत से छुटकारा पा जाएंगे,  फिर वह  अनाथ है, उसके मरने से किसी को कष्ट भी ना होगा| उलटे सबका भला ही होगा और उसका जीवन भी  सार्थक हो जाएगा| में जाकर बैठ गया और लकड़बग्घे के आने की प्रतीक्षा करने लगा, सुबह  जब  वह गांव वाले शौचादी  के लिए खेतों की ओर निकले तो  अनायास उनकी  दृष्टि  पिंजरे की ओर गई| पिंजरे में बंद लकड़बग्घे को देख कर वे  हैरान रह गए, भागे-भागे  पिंजरे के पास पहुंचे| भीतर का दृश्य देखते ही उनकी आंखें विश्मय से फट पड़ी थी , और लकड़बग्घा अपनी मौत की घड़ी गिन रहा था | सभी की गर्दन लज्जा  से झुक गई ,आंखें भीग गई, युवक ने अपने प्राणों की बलि दे कर सारे गाँव को संकट से उबार लिया था और उनके सामने एक आदर्श प्रस्तुत किया था जो वास्तव में सब के लिए प्रेरणा बन गयी  प्रेरणा बन गया |


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मंगलवार, 31 अक्तूबर 2017

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